झूठा दर्पण
25/06/2010 14:16
रे मन तू जन जन को क्या देखे I रे मन ................I
तू वही तेरा तन भी वैसा ,
होइहे सो गती औरन के लेखे ,
वो सम तू विसम जो ठहरा ,
औरन का लुटे अपना बिठा के पहरा ,
एक सुने तो अनेक सुनावे ,
एक हार बाद चालीश दिन हरावे ,
कहीं कम ना किसी से पीछे ,
बार बार क्या औरन को निरेखे I रे मन ...............I
अपना अपना अपना तीन हैं ,
धन प्रिया और जमीन है ,
तीनो गय हाथ मला अब ,
दूसरा गया एक धरे जब ,
विरले होत संसार में कहानी ,
तीनो मिले सब संग जवानी ,
औरन का पीछा तो जग जीवन को है ,
छोड़ हाय हाय आ अब मती को परखे I रे मन .......I
कहे साधू सुनो सब बड़ भागा ,
जो न सुने सो बड़ा अभागा ,
बानी बचन कर्म और मन ,
इन सबका शुद्धी गति का साधन ,
छोटा मुँह बड़ बड़ बोलन लागु ,
कहत संतन मठ छोड़ के भागु ,
देखि रैदास को बना वेद पाठी ,
महा मूढ़ जग समझन लागु ,
अनपढ़ कैसे अब पाती लिखे I रे मन ..........I
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