न गीतू तू बात ना समझ सकत बाडु तू हम के आज जाये दे हमार जीन्दगी के सवाल बा हम के हमार प्यार बुलावत बा अगर तू हम के आज यहाँ से ना जाये देबू त हम इहे कोई गाडी के नीचे आके आपण जान देदेम I गयेत्री लीला के बातो के तहजीब और उसके चेहरे को देखकर थोडा घबरा जाती है और कुछ सोच पाती की इतने में कीसी ने जोर से आवाज लगाईं I अरे इ लिका केकर बा हो पकड़ ना त अभी त इ हमरा गाडी के नीचे आ जाइत I अनजानी आवाज सुन कर गायेत्री पीछे मुड कर देखती है जो कोई उसे ही संबोधित कर रहा था I दरअसल राजू दोनों के बातो में लगे देख खेलता हुआ एक खीलौनो के दूकान पर जाने की कोशिश कर रहा था की अचानक ही उसके सामने एक स्कोर्पीओ आ कर रूकती है I गायेत्री दौड़ कर राजू को पकड़ने चली जाती है इधर लीला गायेत्री को अपने से दूर हुआ जान कर एक सामने के ही छोटे से बस स्टेशन से धीमी गाती से आती हुई बस को दौड़ कर पड़ने की कोशीश में भागने लगती है I गायेत्री जैसे ही राजू को पकड़ कर वापस मुडती है लीला बस के पीछे दौडती हुई देख राजू को एक बुजुर्ग के हवाले ````( जो की उसी के ही गाँव का आदमी होता है और मेले में सब्जीयाँ लेकर बेच रहा होत ा है ) करती हुई लीला के पीछे भागती है और उसे आवाज लगाती है रुक जा लीला रुक जा ळीईईईईळाआआ रुक जा पर कोई फायेदा नही होता है लीला तबतक बस का दूर रोड पकड़ कर उपर चढ़ चुकी होती है I लीला अपने आँखों में छलक आयें आंशुओं को अपने दुप्पट्टे से साफ़ करती हुई कहती है हम के माफ़ कर दीह गीतू और बस के साथ अपनी मंजील की और बढ़ जाती है I इधर गायेत्री उसे जाती हुई देखते रह जाती हैं और बोझील कदमो से राजू को उठाकर घर की और चल पड़ती है I
अब तो गायेत्री के कदम उठ कर उसके घर की तरफ चलने से इनकार कर देते है गायेत्री कभी रस्ते में बैठती है तो कभी रोटी सुबकती चानले लगती है आखीर वक़्त से तीन घंटे लेट घर पहुचती हैं घर के सामने अपने बाबूजी और दादा जी को देख कर उसका दील धक् से कर के रह जाता है वो येही सोचती है की आखीर वो उन्हें क्या जावाब देगी , तबतक उसके दादा जी की नजर उसपर पड़ती है वो गायेत्री के पीता जी से कहते है - राधे देख तो गीतू अकेले ही आवत बाडी का लीलावती ओकरा साथ नइखे दीखाई देत, दादा जी के बातो से सब के सब अपनी नजरों मे एक अनहोनी सी ले कर गायेत्री के तरफ देखते है गायेत्री की माँ उसके पास दौडती हुई जाती है और उसे आहीस्ता से ही पूछती है गीतू का भइल बेटा तू उदास कहे बाडु तोहरा आँख में आंशुं काहे बा और लीलावती कहाँ बाड़ी ? माँ के इतने सारे सवालों से गीतू बस अपनी माँ को देख कर फफक पड़ती है और कंधो से लग कर रोने लगती हैं तबतक उसके पीता जी भी वहां आ जाते हैं और गीतू से पूछने लगते है गायेत्री बता लीलावती कहाँ बीया I पीता जी के कड़क आवाज ख़तम होते ही गायेत्री सुबकते हुए बताने लगती है-बाबूजी लीला हम के मेला में छोड़ के कलकत्ता चल गइलI
उसके बात ख़तम होते ही राधे अपने सबसे प्यारी बेटी गीतू को एक जोरदार थप्पड़ मारते है तबतक गायेत्री की माँ गायेत्री को अपनी बाहों में भर के उसे छुपाने की कोशीश करती हुई कहती है - ये मे गीतू का दोष बा सब दोष त लीलावती के रहे इहे थोड़े कहले होई की तू मेला से कलकत्ता चल जा राधे उसकी माँ पर चिल्लाते हैं की हम पहीले ही तोहरा से मना करत रहनी की दोनों के एक साथ मेला में न जाये द लेकीन अब सियाराम ( लीला के पीता जी ) जी के कौन जवाब दी तू की हम ?
लीला के ड्राइंग रूम का शीन..........!
रमेश ओकरा बाद हम गीतू के धोखा देके मनैनी मेला से कलकत्ता ना जा के सीधे संतोष के घर सीताब्दीयर गैनी और हमनी दोनों कलकत्ता जा के अपना माई बाबूजी जी के फ़ोन पर अपना आवे के बारे में बतवनी लेकीन हमार बाबूजी हम के हमेशा के खातीर अपना घर में ना आवे के हीदायत देदेल I अब रामू तू ही बताव की हम कीतना खुश रहीं आखीर हम का गुनाह कर देले बानी I रमेश लीला के भर्रा आये आवाज से उका खुद भी गला रुंध जाता है पर अपने आप को संभालता हुआ कहता है , भगवान् पर भरोसा करीं लीला जी सब ठीक हो जाई, आखीर राउर पीता जी यह शादी से नाखुश काहे बानी का संतोष अच्छा लड़का नैखी या फीर कोई पढाई लीखी में कमी रहे I लीला रामू के सवालों के जवाब में बताती है, ना ना रामू संतोष के संगीनी बन के हम खुद के ऊपर गर्व महसूस करत बानी इ बात हमार बाबूजी और माई भी जानत बानी संतोष MBA कर के आपण बुइसेनेस कर रहल बाड़े कोई चीज के कमी न भइल आज तक I लड़का बच्चा भी अछा से ही पढ़ लीख रहल बाडन I शाम के संतोष से मिल के तू उनकरा बारे में जान जइब, रमेश और लीला दोनों बात कर होते हैं I
शीन बदलता है
रात का समय लगभग ९ - १० बजे डीनर के छोटे से टेबल पर रमेश और लीला दोनों आमने सामने बैठे होते हैं एक तरफ लीला का पती संतोष अपने दो बच्चों के साथ बैठे होते हैं लीला सबको खाना निकाल कर दे रही होती है तभी संतोष रमेश से उसका हाल समाचार पूछता है - सब ठीके बा भाई साहब ऊपर वाले के मेहरबानी से अभी तक जीन्दा ही बानी रमेश कहता है I संतोष कहता है - अएंसन काहें कहत बाडअ भाई भगवान करस की तू १०० साल और जीन्दा रहअ रमेश आगे और कुछ कहना नहीं चाहता है चुचाप खाना खा कर एक कमरे में सोने चला जाता है I इधर लीला बेड रूम में उसके पती संतोष से बताती है जान्त्बानी रमेश बहुत दुखी इंसान बाड़े मगर दील के बहुत बड़ा भी I संतोष को रमेश को देख कर ही उसका दील साहानुभूती से भर गया था लीला की बातो से अब उससे रहा नही गया और पूछ ही बैठा लीलू रमेश के बारे में कुछ पूछल चाहता आखीर उ कहां से आवत बाडन ? और लीला को लेकर रमेश के पास आता है रमेश जहां सोने की नकांम कोशीश कर रहा होता है I
रमेश दोनों को देख कर कहता है आईं जा बइठी जा I
संतोष और लीला दोनों बैठते हुए कहते हैं रामू तू हम के अभी तक बत्व्ल ना की कहाँ से आवत बाड ? और इतना दीन कहां रहअ ? तोहरा साथ में का भइल ?
अब तो रमेश के मुह से एका एक निकलता है जेल से.......! काsssssssssssssss! जेsssssल से लीला संतोष दोनों चौक जाते हैं I
हाँ संतोष जी हम खून के जुर्म में बीस वर्स के सजा काट के आवत बानी - रमेश कहता है I
लीला कहती है रमेश तू जेल काहे गइल रहअ ? तू त अइसन कुछ ना कर सकत बाड हम के सब कुछ साफ़ साफ़ बताव I
रमेश उन दोनों को अपनी आप बीती सुनाता है फ्लैश बैक में रमेश के घर का शीन जब रमेश ८ साल का रहता है दीपावली के एक सप्ताह पहले मुहल्ले के सब लोग अपने अपने घर की लीपाई पोताई में लगे रहते हैं कोई अपने घर को चुना से पोत रहा होता है तो कोई मीट्टी और गोबर से लीपाई कर होता है रमेश के पीता जी राम दयाल जी घर के सामने चारपाई पैर बैठे न्यूज पेपर पढ़ रहे होते है रमेश की माँ भी अपने घर के दरवाजे खीड्कीयों को साफ़ कर होती है रमेश अपनी माँ को छोटे से जग से बाल्टी से पानी नीकाल कर दे रहा होता है , तभी गाँव के ही एक साहूकार सेठ दशरथ दो आदमीयों के साथ आते हैं I
सेठ दसरथ जी कहते हैं - राम राम राम दयाल जी और सुनाव का हाल बा ?
राम दयाल जी खड़े होते हुए दसरथ जी के साथ दोनों नवान्गंतुक का भी सवागत करतें हुए कहते हैं जय राम जी के दसरथ भईयां बहुत बढीयां और सुनाव तोहरे का हाल बा इहाँ सब के के बां हम पह्च्न्नी ना ?
अरे भाईं सब बतावत बानी थोडा सबर रखअ पहले कुछ जल पान करके के त लाव दसरथ जी कहते हैं I
हाँ हाँ भाईं काहे ना रामदयाल जी कहते हैं और रमेश को आवाज लगाते हुयें कहते हैं रामू ज़रा घर से कुछ जल पान करे के त लावअ बेटा I रमेश अपने पीता जी को अच्छा बाबूजी कहते हुए अपनी माँ के साथ घर के अन्दर चला जाता है I
इधर दसरथ जी रामदयाल जी को दोनों नवान्गंतुको के बारे में परीचय कराते हुए कहते हैं - इ बाडन राधे राम जी और इ बाडन इनकर पीता जी श्री भरत लाल जी रामदयाल जी हम तोहरा से कहले रहनी न की हम तोहार बडका लड़का के शादी के खातीर एगो बढियां लड़की देखले बानी त अब तू इ बताव की एहमें कौन लड़की के पीता जी ह ? और कौन लड़की के दादा जी ? दसरथ जी अपने सवभाव के अनुसार रामदयाल जी से मजाक के तौर पर पूछते है I रामदयाल जी हसतें हुए कहते हैं - राजा दसरथ तू कभी सुधर ब ना अरे इ त साफ़ जाहीर बा की राधेराम जी लड़की के पीता जी इ भरत लाल जी लड़की के दादा जी I तबतक रामू एक जग में पानी और एक प्लेट में कुछ मीठाईयाँ लेकर आता है और नवान्गंतुको के साथ दसरथ जी को नमस्ते करता है दसरथ जी कहते हैं खुस रहअ बेटा और उसे अपने जेब से एक टौफ़ी निकाल कर देते है रमेश खुशी खुशी चला जाता है I फीर दसरथ जी अपने साथ लाये उन दोनों को आदमी को रामदयाल जी के बारे में बताते हुए कहते हैं - इ बाडन रामदयाल जी रीटायर्ड मेजर साहब इनकर बड लड़का कौलेज कईला के बाद गाँव से थोडा दूर एक बाज़ार में आपण बुइसेनेस करत बाडन I
रामदयाल जी तीनो आदमी को जल पान करने को कहते हैं तीनो मिलकर जल पान करते हैं और तब दसरथ जी कहते हैं अच्छा त रामदयाल भाईं इ बताव की बड़का कहाँ बा बोलावा भाईं इहाँ सब के लड़का देखे आइल बानी फीर लौटे के भी बा , रामदयाल जी दसरथ जी से कहते हैं - अरे भाईं लौटे के काहे बा आज येहीजे रुकीं जा का इहाँ पर खाना ना मीली ?
ना ना भाई जी अईसन कोई बात नईखे दरअसल बात इ बा की आज ही शाम के हमनी के लड़की अपना फूफा जी सीयाराम जी के साथ कलकत्ता से आवे वाली बाडी येही से हमनी के घर में होखल थोडा जरुरी बा राधेराम जी कहते है , फीर रामदयाल जी अपने बड़े लडके को बुलवा लाते हैं राधेराम जी और उनके पीता जी श्री भरत लाल जी को लड़का पसंद आ जाता है तब भरत लाल जी कहते हैं की अच्छा त रामदयाल जी लड़का त बहुत बढीयां बा बाक़ी कुछ लेन देन के भी बात हो जाए I तब दसरथ जी बींच मे बोलते हैं - रउवा लेन देन के लेके चिंता मत करीं भरत लाल जी पहले इनका के आपण लड़की त दीखा दीं लेन देन बाद में भी होत रहीं और रामदयाल जी की और मुखातीब होते हुए कहते हैं - का हो दयाल भईयां ठीक कहानी की ना ?
हाँ हाँ भाई काहें ना त रउवा सब बताईं की हम कब आईं ? रामदयाल जी पूछते हैं I
भरत लाल जी कहते हैं - ठीक बा रउवा दीपावली के दीन आ जाईं I
अच्छा ठीक बा I कहते हुए रामदयाल जी दोनों के साथ दसरथ जी को भी वहां से बीदा करते है I
शीन बदलता है
राधेराम जी के घर का शीन शाम के ५ - ६ बजे का समय सीयाराम जी राधेराम जी के जीजा साहब राधेराम जी के बड़ी लड़की और छोटी लड़की गायेत्री के साथ घर में आते हैं घर में उनके आने से खुसी का माहौल बन पङता हैं शाम को राधेराम जी उनके पीता जी भरत लाल सीयाराम जी उनकी पत्नी राधेराम जी की पत्नी एक साथ बैठे रहते है वहीं उनकी बड़ी लड़की भी खडी रहती है राधेराम जी सब को शादी के लीये लड़का देख आने और लड़के वालो को दीपावली के दीन लड़की देखने आने के बारे में बताते है तभी उनकी लड़की वहां से दुसरे घर में चली जाती है सब मीलकर शादी ठीक ठाक हो जाए इस्केलीये भगवान से दुआ करते है I
एक सप्ताह बाद राधेराम जी के घर के सामने का दृश्य दीपावली के दीन गाँव के हर वयक्ती मुहल्ले के हर आदमी के चेहरे पर एक ख़ास उम्मंग दीखता है हर कोई अपने आप को सजाता हुआ , कोई दीप जलाने की तैयारी , तो कोई पटाखे जलांने की कोशीश में लगा हुआ है I तभी रामदयाल जी के साथ सेठ दसरथ जी और रमेश अपने पीता जी के उंगली पकडे हुए टेम्पू से उतरते हुए दीखते है और राधेराम जी के बैठक खाने ( फार्म हाउस का दालान ) में पहुचते हैं I वहां पर भरत लाल जी मीलते है उनका स्वागत करते हैं और जल पान कराते हैं , रात के लगभग ८ - ९ बजे राधेराम जी भरत लाल जी और उनके घर के सभी पुरुष सदस्य इक्कठा बैठे हुए दीखते हैं दालान के बाहर बम पटाखों की और गाने बाजो की आवाज आती हीं सुनाईं पड़ती है I दसरथ जी कहते हैं - अच्छा त राधेराम जी आज के माता लछमी और कुबेर भगवान् के पावन दीन में जरा रामदयाल जी के घर के लछमी के भी दीखा द और कीतना इनके लछमी देत बाड इहो बता द I
ठीक बा दसरथ जी रउवा पहले हमार लड़की के देख ली - राधेराम जी कहते हैं I और अपने सबसे छोटे भाई से अपनी लड़की को बुलवा लाते हैं I लड़की आती है सब को प्रणाम करती है और एक जगह बैठ जाती है रामदयाल जी को लड़की पसंद आ जाती है और फीर राधेराम जी से कहते हैं - लड़की त हमके बहुत संस्कारी और सुन्दर लागल भाई जी इ त हमरा घर के बहु ना लछमी ही बन के जाई I रामदयाल जी के बातो से वहां उपस्थीत सभी बेहद खुश होते हैं और रामदयाल जी अपने कुरते के बगल से १०१ रुपये नीकाल कर लड़की के हाथों में रख देते हैं तब राधेराम जी अपनी लड़की से कहते हैं - अब तू जा बेटी I और लड़की उठकर एक बार फीर रामदयाल और दसरथ जी को नमस्ते करती है और जाने को मुडती है की भरत लाल जी लड़की दादा जी रमेश की तरफ इशारा करते हुए जो की अपनी होनेवाली भाभी को देख रहा होता है कहते है बेटी तू इनका भी अपने साथ ले ले जा I लड़की सीर्फ हाँ म अपना सर हीलाती है और रमेश का हाथ पकड़ कर अन्दर घर में लेके चली जाती है रामदयाल जी दसरथ जी राधेराम जी भरत लाल जी और उनके सभी भाई बंधू शादी पक्की हो जाने की खुशी में एक दुसरे को मुबारक बाद देते है और उस दीपावली के दीन को और खुशनुमा करते हुए एक दुसरे के मुंह में मीठाईयाँ खीलाते ह और बैठ कर लेन देन की बात करने लगते हैं I
राधेराम जी के दुसरे घर का शीन जहां पर घर के सभी औरतें लडकीयाँ रमेश को घेरे रहती हैं , एक पूछती है का हो बबुआ तोहर माई भी तोहरे लेखा सुंदर बाडी का की तू कोई और के लईका हव, वहां मौजूद और सभी ठहाके के साथ हँसने लगती हैं रमेश छोटा होते हुए भी सब समझ जाता है की ये सब मुझसे मजाक कर रही हैं वो अपनी मासूम आवाज में कहता है ना जी हम त अपना माई के ही लईका हईं आ हमार माईं हमसे भी सुन्दर बाडी I रमेश की बातों से सभी औरतें एक बार फीर हसने लगती है I तभी एक छोटी सी, लगभग ६ या ७ साल की लड़की जीसका नाम गायेत्री रहता है अपने हाथ में एक छोटे से प्लेट में कुछ मीठाईयाँ और पटाखे रख कर अन्दर दाखील होती है और अपनी माँ से कहती है माई ल इ इनका देदअ , उस लड़की के ऐसा करने पर सारी औरतें उसे एक साथ देखती हैं और एक उसे अपनी गोदी में उठा के रमेश की और इशारा करती हुई कहती है गीतू इ के हवन तू इनका खातीर इ सब लईलू हा ? वो छोटी सी लड़की अपनी तोतली आवाज में कहती है हाँ चाची हम दुनो एक साथ पटाखा जलाईब और रमेश की और इशारा करती हुई कहती है चलअ रमेश बाहर चलके पटाखा छोड़ल जाई , अपनी चाची की गोदी से उतर कर गायेत्री और रमेश दोनों घर के आँगन में छोटे छोटे पटाखे जलाने लगते हैं I दोनों उस दीन दो दोस्त की तरह घुल्मील जाते हैं और दोनों मील कर मीठाईयाँ खाते हैं और साथ ही एक बेड पर सो जाते हैं I ( राधेराम जी के चार बच्चे रहते है एक बड़ी लड़की -रमेश की भाभी उसके बाद एक लड़का रामकुमार - जो की एक हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा होता है वो कभी कभी ही और किसी ख़ास मौके पर ही अपने घर आ पाता है, उसके बाद गायेत्री और फिर सबसे छोटा राजू )
शीन बदलता है
अप्रैल मई का महीना रमेश के घर का शीन रामदयाल जी अपने घर के सभी सदस्यों के साथ शादी की तैयारी में लगे हुए है सभी अपने आप को सजाने सवांरने में लगा हुआ है रामदयाल जी अपने छोटे भाईयों दीनदयाल और कीशन दयाल से कहते है अरे तुम दोनों नाँच पार्टी और साम्यांना का बयाना दे दीहले रहजा की ना ?
हाँ हाँ भईयां सब एकदम ठीक और तैयार बा तू चीनता मत करअ उ सब अपने आप ओहीजा टाईम पे पहुँच जईहें कीशन दयाल कहते हैं I
दो पहर के लगभग ४ - ५ बजे का समय सभी आदमी तैयार होकर बारात जाने की तैयारी में खड़े गाडी के इन्तजार में लगे रहते हैं थोड़ी देर में गाडी आ जाती है सभी अपनी अपनी सीट संभालते हैं , गाडी चल पड़ती है गाडी में गाना बज रहा होता है आयें हम बाराती बारात लेके जायेंगे तुझे भीss.........! और फीर गाँव इटारी ( राधेराम जी गौएत्री के पीता का गाँव ) के पास गाडी रुकती है सभी बाराती उतरते हैं और साम्यान्ना में जाकर बैठते हैं वहां नाच गाना (यहाँ पर कोई भी एक गाना जो की एक नौटंकी वाली लड़की को गाते हुए दीखाते हैं ) होता है I शादी होती हैं सुबह बारात दुल्हन को लेकर वापस आ जाती है I बारात और दुल्हन के घर आते ही घर और मुहल्ले के सभी बहुत हरसो उल्लाश में रहते है I
समय का चक्र अपने गती से घूमता रहता है , सब अपने अपने दीन्चार्या में लग जाते हैं ,