बलिदान

20/04/2010 15:04

 

गाँव सीताब्दीयर जीला छपरा सारण के एक दम्पती के घर के सामने का दृश्य

क बार हुलीये से लगभग बृध हो चूका एक आदमी आता है और सामने कुंवे से पानी नीकाल रही एक औरत को संबोधीत करता हैं !

 

- नमस्ते लीला जी कईसन बानी रउवा I

 

आँ ! के ह जी हम रउवा के पह्चाल्नी ना ? कहते हुवे लीला कुंवे में लटके हुवे बाल्टी के डोर को पकरी हुई अजनबी की और मुखातिब होती हैं I

 

हम जानत रही लीला जी की रउवा हम के ना पहचान पाईब अरे हमार जीन्दगी हम के पहचाने से इंकार कर दीह्लक त रउवा हमका का पहचान पाईब – बृध कहता हैं I

 

बृध की बातो से लीला बीस्मीत हो उठती है है आश्चर्य भारी नजरों से देखती हुई उसके पास आती है और कहती है हम सही में रउवा के ना पहचान पईनी भाई जी रउवा आपण नाम त बताई !

 

हमार नाम रमेश बा लीला जी - बृध अपना नाम बताता हैं I

ssss मेश ! तूssssउ बाडअ इ आपन का हाल बना लेले बाङअ ? कहाँ से आ रहल बाङअ ? - लीला लगभग भागती हुई रमेश के और करीब आती हैं और रमेश को उसके हाथो से पकङ्ती हुई उसे अपने घर की तरफ लगभग खीचती हुई ले जाती हैं और कहती हैं - चलअ रमेश अन्दर चल के बैठ के बात करे के तू बहुत थक गईल बाङअ I रमेश बोझील कदमो से लीला के साथ हो लेता हैं I लीला के एक ड्राइंग रूम का सीन जहां एक कोने में कुछ पुरानी पर सजो सवांर के रखी हुई कुर्सियां पड़ी होती हैं लीला रमेश को एक कुर्सी देकर कहती हैं - बइठअ I हम अबही चाय लेके आवत बानी रामू तू बहुत दूर से आवत बाड़ थाकल बाड़ Iऔर अपने कीचन की और चली जाती है कीचन में जा कर चाय बनाने के लीये सामान इक्कट्ठा करती हुई उसे ध्यान आता है की उसके पास तो दूध ही ख़तम है , वो दूध लेने के लिए चली जाती है I

 

इधर रमेश ड्राइंग रूम, में बैठा कुर्सी से उठता है और सामने दीवारों पर टंगी तस्वीरों को अपना चस्मा ठीक करता हुआ देखने और उन्हें पहचानने की कोशीश करता है , जीसमे उसे गायेत्री और लीला दोनों के एक साथ फोटो दीखता है वो उस फोटो फ्रेम को दीवार से उतार कर अपने गमछे से साफ़ करता है, उस फोटो को देख कर रमेश को अपने और लीला की पहली मुलाक़ात के दीन याद आने लगते है और वो वहीं खडा खडा यादों में खो जाता है I फ्लैश बैक - रमेश के घर का सीन उभरता है I रमेश जल्दी जल्दी खाना खा रहा होता है उसकी भाभी उसे छेड़ती हुई कहती है I

- अरे रे रे रे रे अरे इ तू का कर रहल बाड़ आराम से खा भाई कोई गाडी छुट जाई का या फीर तोहार गीतुआ कहीं भाग जाई I

भाभी, ( जल्दी जल्दी मुह चलाता हुआ ) तू ना जानबू हम के जल्दी से पहुँच के पहले गीतू के बतावे के बा की हम नौकरी करे जात बानी जब हमरा के नौकरी मील जाई तब हम गीतू से येही साल में शादी कर लेब , रमेश कहता है I

 

अच्छा इ राज बा जल्दी जल्दी खाना खाए के - रामू की भाभी कहती है I रमेश खाना खा कर अपनी साइकल नीकालता है और चल पड़ता है अपनी मंजील की और , दील में अपने प्यार से मीलने के उमंग लीये हस्ता गाता हर मार्केट और बाज़ार से गुजरता हुआ गायेत्री के गाँव से दो कीलोमीटर दूर एक छोटे से सहर ( मनैनी ) में रुकता है और वहां से कुछ मीठाइयां लेता है I अपनी साइकल संभालता है और हमेसा गाता मुस्कुराता रहनेवाला रमेश गायेत्री के गाँव को जाने वाली सड़क पर पुरे धुन के साथ एक गाना गाने लगता है - आप के करीब हम रहते हैंssssss अपना नसीssब तुम्हें कहते है sss.....! यूँ गाता झूमता रामू गायेत्री के गाँव के पास एक बगीचे में पहुंचता है जहां उसे राजू ( गायेत्री का छोटा भाई ) मीलता है राजू रमेश को नमस्ते करता है - रमेश अपने साइकल से उतर कर घुटने के बल बैठते हुए राजू को प्यार से एक पप्पी लेता हुआ कहता है - नमस्ते राजू कहाँ जात बाडअ ? घर में केके बा दादी आ गीतू दीदी माई बाबूजी खेत में काम कर रहल बानी, हम उनके पानी लेके जात बानी - राजू रमेश को बताता है I

 

अच्छा ठीक बा तू जा और फीर अपने जेब से एक चोकलेट नीकाल कर दे देता है, राजू खुस हो जाता है और चला जाता है रमेश भी अपने साइकल पर चढ़ता है और गायेत्री के फार्म हाउस के सामने उतरकर साइकल खडी करता है फार्म हाउस के अध् खुले गेट को खोलता हुआ अन्दर दाखील होता है और एक गाना गुनगुनाने लगता है कैsसे मीजाssज आsप के है ज़रा फरमाइए ..........! सामने से आवाज आती है - हम तो है खैरियत से अपना सुना ssssइये......! रमेश अनजानी आवाज को सुनकर आवाज की ओर बढ़ता है जो की सामने कदम के पेड़ के ओट स आ रही होती है I कदम के पेड़ के पास जाकर एक तरफ से उस आवाज के बारे में जानने के लीय देखता है उसे कोई नही दीखाई देता है वो फीर पेड़ के गोल घूमकर देखने की कोशीश करता है , जो की वो गाना लीला गा रही होती है, गायेत्री और लीला दोनों उस पेड़ के पीछे छुपी रहती हैं I रमेश को पेड़ के चारो तरफ गोल गोल घुमाती हैं रमेश समझ जाता है की उसे कोई बेवकूफ बना रहा है और एक जगह खडा हो जाता ` है I उसे गायेत्री दीख जाती है गायेत्री रमेश को देख कर वहाँ से भागने के लीये लीला के तरफ इस कदर मुडती है की रमेश के चहरे पर उसके बालों के झटके लगते हैं और दोनों एक तरफ भागती हैं गायेत्री आगे आगे और लीला पीछे पीछे रहती है रमेश भी उनके पीछे दौड़ता है , रमेश के हाथ में लीला का दुप्पट्टा आ जाता है लीला गायेत्री को आवाज लगाने लगती है - अरे रुक जा गीतू हम त फँस गैनी अब तू रुक जा वरना पता ना हमरा साथ में का हो जाई , गायेत्री मुड़कर देखती है लीला वही बैठ कर अपनी साँसें ठीक करने की कोशीश कर रही होती है I गायेत्री रमेश को लीला के बारे में बताती है और पास आकर रमेश के गले में अपनी बाहें डाल कर शीकायत भरे लहजे में कहती है रामू तू इतना दीन स कहाँ रहल अब तोहके हमार याद आइल I

 

रमेश बताता है - अरे ना पगली अइसन कईसे सोच लिहलू तोहार याद में ही त हमार सांस चलता Iतबतक लीला उनके बींच में ही बोल पड़ती है अरे गीतुआ तू रामू के ऐसे खड़े खड़े ही सब पूछ लेबू का अरे इनका बैठाव कुछ पानी वाणी पीये के द यार दूर से आइल बाडन थक ग़ईळ होइंहें I

 

गयेत्री रमेश का हाथ पकडे हुए कहती है हाँ हाँ चलजा बैइठ के बात कैइल जाई और कदम के पेड़ के नीछे बने चबूतरे पर जा कर तीनो बैठते हैं, गायेत्री रामू और लीला को वहां पैर बैठा कर खुद पानी लेने चली जाती है रमेश लीला एक दुसरे के बारें में पूछते और जानते हैं गायेत्री पानी का जग और एक प्लेट में कुछ खाने को लाती हैं तीनो मिलकर पानी पीते है I रमेश गायेत्री से अपने नौकरी करने जाने के बारें में बताता है गायेत्री रमेश के बातों को सुनकर मायूस हो जाती है और रमेश के कंधो पर अपना सर रखकर सुबकने लगाती है , और कहती है रामू तू जानत बाड़ लीला यहाँ पर काहें आइल बाडी - - काहे ? रमेश गायेत्री से पूछता है I लीला कलकत्ता में अपना एक सहपाठी संतोष नाम के लड़का से प्यार करेली और इनकर बाबूजी इ नइखन चाहत की लीला के शादी ओह लड़का हो सके येही वजह से लीला के यहाँ पर भेज देले बाडन - गायेत्री रमेश को लीला के कलकत्ता से आ कर यहाँ गाँव में रहने का कारण बताती है I लीला के चेहरे पर गायेत्री के बातो से उदासी छा जाती है , रमेश की नीगाहें लीला पर पड़ती हैं जो की सामने ही खेल रहें छोटे छोटे बच्चो को एक टक से देख रही होती है I रमेश लीला को देख कर अपनी और गायेत्री के अलग होने और उसके शादी कीसी और से होने और अपने पीता जी के कड़क मीजाज के बारे में सोचने लगता है रमेश के घर का सीन उभरता है उसके पीता जी अपने घर के आँगन में उसके चाचा जी के साथ बात कर रहें होतें हैं I

 

रमेश के चाचा दीन दयाल रमेश के पीता जी राम दयाल जी से कहते हैं - भैयाँ दोनों के खुसी के बारें में सोचअ तनीका दुनो मासूम बाडन एक दुसरे के साथ बहुत खुस रहींहें दुनो के शादी कर द I

 

राम दयाल जी कहते हैं अरे तू का पागल हो गईल बाड़अ का हमार सारा पैसा पानी में दाल देबे के चाहत बाड़अ का अरे भाई हम इतना पैसा खर्च कर के अपना लड़का के पढ़व्नी आ फ्री में शादी कर दीं ना भाई ना कम से कम १.५ लाख रुप्यां दहेज़ में लेवे के बा हो साथ में हमरो भी एगो लड़की बीया ओकर भी त शादी करे के बा हमरो भी दहेज़ देवे के पड़ी I और फिर दीखता है की एक दीन गायेत्री की शादी कीसी और से होने लगती है रमेश शादी वाले दीन बहुत शराब पी लेता है और शादी के मंडप में जा कर गीर जाता है और बेहोश हो जाता है गायेत्री उसके पास दौड़ के आती है उसे जोर जोर से रमेश रमेश कह कर उठाने लगती है I बार बार रमेश रमेश की दर्द और संसयं भारी आवाज से रमेश का ध्यान टूटता है और ये होस आता है की वो तो आज लीला जी के घर में है जो की अपने हाथ में लीला और गायेत्री के फोटो लीये ना जाने कब अपनी पुराने ख्यालों में खो गया था और लीला ना जाने कब से हाथ में चाय का प्याला लीए रमेश को आवाजें लगा रही थी I रमेश अपने ख्यालों से बाहर तभी आता है जब लीला उसके कंधों को पकड़कर नही हीला देती है I

 

लीला कहती है - रामू हम ज़रा पास के ही एक घर से दूध लेवे के खातीर चल गइल रहनी हम के थोडा देर हो गईल बा बाक़ी तू कहाँ खो गईल रहलअ ? कब से हम तोहके चाय लेके आवाज लगावत रहनी , रमेश के हाथ में अपनी और गायेत्री की तस्वीर देखकर लीला का दील रमेश के प्रती करून सहानुभूती से भर आता है , लीला रमेश के चेहरे पर छाय गम के बादल को देखकर उसे हमदर्दी जताते हुए पूछती है , का बात बा रमेश ? तू हमके बताव तू कहाँ से आवत बाड़ ? इतना दीन तोहार कोई भी अता पता ना मीलत रहें , आज तोहके हमार याद कैसे आइल ? हम त सुनले रहीं की तू शादी कर लेलअ तोहार बचा भी रहन ? रमेश को लीला के सवालो से उसके व्यथीत होने का पता चल जाता हैं और अपने आप को संभालते हुए उस कमरे के माहौल को सामान्य बनाने की कोशीश करता हुआ कहता हैं - अरे इतना सवाल एक साथ करबू त हम कैसे बता पाइब बारी बारी से पूछअ हम सब बताइब पहले तू बताव की तू अपना संतोष के साथ खुश बारू न I

 हाँ रमेश हाँ खुश त बानी - और लीला भी उसके साथ ही रखे एक छोटे से मेज पर बैठ जाती है और कहती हैं I रमेश लेकीन माँ बाप के घर से नीकल के के न खुश रह सकता लीला रमेश को अपनी आप बीती सुनती हुई रुआंसी सी हो जाती हैं उसके आखों में पानी भर आते हैं वो अपने आँखों के पानी को साफ़ करने लगती हैं I

लीला के हालातो से अन्भिग्ग्य लीला को देखकर रमेश को कुछ अटपटा सा लगता हैं और रमेश पूछ ही पड़ता हैं , क्या बात बा लीला जी लागता की कोई मुस्किल मे बानी रउवा का रउवा अपना शादी से खुश नईखी का I

ना रमेश ऐसन कोई बात नइखे हम अपना शादी से बहुत खुश बानी बात दरअसल इ बा की जब हम गायेत्री के घर में रहनी और तू अपना रोजी रोटी के खातीर परदेश चल गइल रहलअ ओही शाल दसहरा मेला से हम गयेत्री के मेला में छोड़ के हम सीताब्दीयर छपरा आ गइल रहनी और हम संतोष के साथ में कोर्ट मैरिज़ कर लेले रहनी ओकरा बाद ता हमार माँ बाप हम के अपना घर में कभी ना आवे के हीदायत दे देले रहलन I रमेश तोहरा परदेश जाये के ठीक एक महीना बाद , बाकी आगे ( फ्लैश बैक - लीला अपने और रमेश के मुलाकात के बाद के दीनो के बारे में बताती हैं ) एक दीन कलकत्ता से गायेत्री के पीता जी के लीये फ़ोन आता है, जो की गायेत्री ही उठाती हैं गायेत्री - हैलो..!   दूसरी तरफ से हैलो की आवाज सुनने के साथ ही गायेत्री नमस्ते कहती हैं और ठीक बा हम अभी बाबूजी के बुलालावत बानी कहती हुई फ़ोन का रिसीवर साइड में रखती हुई पहले लीला के पास जाती हैं और लीला को फ़ोन के बाबत बताती है, उसके बाद अपने बाबूजी को अपने फूफा ( लीला के पीता जी ) जी के फ़ोन आने के बारे बताती हैं I राधे मोहन ( गायेत्री के पीता जी ) फ़ोन उठा कर सुनने लगते हैं दोनो तरफ से सलाम दुआ होने के बाद राधे मोहन कहते हैं अछा ठीके बा आ जाई हमनी सब तैयार बानी लीला भी अब यहाँ पर खुश रहत बिया मंगनी हो जाई त शादी के ले के हम सब भी निश्चिंत हो ज्ञाईब इधर एक तरफ दरवाजे के ओट से लीला और गायेत्री राधे मोहन के बातो को सुन रही होती हैं और सुनकर एक दुसरे को बीस्मीत नजरो देखती हैं राधे मोहन फ़ोन पर कहते हैं हाँ हाँ जवान लड़की बिया जीतना जलदी हाथ पीला हो जाये अच्छा बा I लीला के आखों में आंशुं देख गायेत्री उसे अपने सीने से लगाती हुई वहाँ से अपने बेद रूम में चली जाती है और लीला को सत्वाव्ना देती हुई कहती है तू चुप हो जा लीलावती ऐसन कुछ न होई जेकरा से तोहार साथ में कोई और के भी जीन्दगी बर्बाद हो जाय I

 

लीला सुबकते हुवे गायेत्री से कहती है हा गीतू हम जानत रह्स्नी की हमार बाबूजी हमार बात ना मनीहे I और रोने लगती है गायेत्री उसे चुप कराती है तबतक गयीत्री को उसकी माँ बुलाती है गायेत्री लीला को चुप हो जाने की हीदायत देकर हम अभी आ रहल बानी कहती हुई अपनी माँ के आवाज लगाने पर कमरे से बाहर चली जाती है I लीला उस रात बीना कुछ खाए पिए ही सुबकती हुई सो जाती है Iदो महीने बाद दसहरा का दीन गाँव के हर लोगो के चहरे पर खुसी का लहर होता है हर कोई अपने आप को सजा सवांर कर एक दुसरे को पीछे दीखाने के होड़ में लगा रहता ह उस दीन तो गयीत्री और लीला ने भी अपने आप को कुछ इस तरह सवांरा था की मोहल्ले के दील फ़ेंक आशीक उन दोनों को देख अपने होठो पर जीभ फिराए बीना नहीं रह पते थे , वैसे लीला का मन आज सुबह से ही कुछ उखडा हुआ सा था गायेत्री के पूछने पर उसने बताया की आज मेरा दील नही लग रहा है, दील करता है की मैं संतोष के साथ होती तो आज के दीन कीतना सुहावना लगता I

 

गायेत्री लीला को अपनी बाहों में भरके उसके होठो को चूमती हुई कहती है - चल पागल तू आज हम के ही आपण संतोष समझ ले आज हम अपना गाँव के मसहुर मनैनी ( एक छोटे से सहर का नाम ) मेला के हर कोना कोना तोहके दीखाइब और जो जो तू कहबू हम सब तोहके खीलाइब I लीला गायेत्री के कमर में चीकुटी काटती हुई उसे छेड़ती हुई कहती है अच्छा त तोहके अभी से ही रामू मनी आर्डर भेजे लगले का और दोनों खील्खीला कर हंसने लगती हैं , गायेत्री लीला से कहती है अच्छा चल अब देर होकता लौटे में देर हो सकता चल लीला कहती हुई दोनों राजू ( ७ साल का गायेत्री का भाई ) को साथ लेकर मेले की तरफ चल पड़ती हैं I गायेत्री की माँ दरवाजे पर खड़ी गायेत्री को आवाज लगाती हुई कहती गीतू जलदी ही लौट आईह दोनों देर हो जाई त तोहार बाबूजी बहुत खीसीईहें - ना माई हमनी जलदी ही आ जाइब कहती हुई गायेत्री चली जाती है I

 

मेले में पहुँच कर दोनों चहकती हुई खूब खरीदारी करती हैं अपने भाई राजू के साथ खुद भी खूब खाती हैं अचानक लीला को एक नए जोड़े पर नजर पड़ती है जो की हस हस कर एक दुसरे के मुंह में जलेबी खीलाते है और खातें हैं एक जगह एक नया जोड़ा ही एक दुसरे के बाँहों में बाहें डाल चरखी पर घूम रहें होते है I लीला ये सब देखकर उसे अपने संतोष की याद आने लगती हैं और उसके आँखों में अंशुं आ जाते हैं वो अपने आप को संभाल नहीं पाती है और गायेत्री को एक तरफ ले जा कर एक जगह तीनो बैठते हैं और लीला गायेत्री से कहती है - - देख गीतू इहे मौका बा हम अपना संतोष से मिल सकतानी वर्ना सारी जीन्दगी हम रो रो के ही गुजारे के पडी I गायेत्री को लीला के बातों से कुछ अनहोनी सी लगती है और लीला से पूछती है का मतलब तू कहल का चाहत बाड़े ?

 

लीला गायेत्री को अपनी मन की बात बताती है देख गीतू तू त जानत बाडु की हमार बाबूजी खुद के अपना जबान के पक्का आदमी मानले हाँ - गायेत्री बींच में बोलती है , और हम संतोष से अलग हो के कभी जिंदा नईखी रह सकत लीला आगे बताती है यह से तू अब अकेले ही घर जा हम आज यहाँ से कलकत्ता चल जाइब और अपना बाबूजी के मनावे के एक आखीरी कोशीश करम वरना वही पर उन्लोगन के सामने ही संतोष के साथ हम कोर्ट मैरिज़ कर लेहमI

 

ना लीला तू इ का कहत बाडु हमके हमार बाबूजी जान से मार दीहें लीला देख तू भगवान् पैर भरोसा कर उ तोहार जुरुर सुनीहें गयेत्री लीला को उसके कंधे पकड़ कर कहती है , तोहरा ऐसे कलकत्ता चल जाये से तोहके इ मालूम बा की तोहार पीता जी कीतना गुस्सा हो सकत बडें और हमार पीता जी के कीतना कुछ कहीहन की एगो लड़की के तू संभाल के न रख सकल हो सकता की पूरा गाँव में भी हमार बाबूजी के बदनामी हो जाये, देख लीला हम तोहार बहीन होखे के साथ साथ तोहार सहेली भी बानी हम तोहार जज्बात के अच्छी तरह से समझ सकत बानी तू हमार बात मान के घर चल सब ठीक हो जाई I गायेत्री लीला के मनसा को जानकार उसे समझाने के एक आंखरी कोशीश करती हुई कहती है - लीला सुन आज से पहीले हम अपना माँ बाबूजी से कभी भी कोई या किसी के शादी वीयाह के बात नईखी कर पाइल लेकीन आज के बाद हम अपना घर के साथ साथ तोहार बाबूजी से भी हम तोहार शादी बारे में बात करब बस तू आज घर चल हमरा साथ में I


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न गीतू तू बात ना समझ सकत बाडु तू हम के आज जाये दे हमार जीन्दगी के सवाल बा हम के हमार प्यार बुलावत बा अगर तू हम के आज यहाँ से ना जाये देबू त हम इहे कोई गाडी के नीचे आके आपण जान देदेम I गयेत्री लीला के बातो के तहजीब और उसके चेहरे को देखकर थोडा घबरा जाती है और कुछ सोच पाती की इतने में कीसी ने जोर से आवाज लगाईं I अरे इ लिका केकर बा हो पकड़ ना त अभी त इ हमरा गाडी के नीचे आ जाइत I अनजानी आवाज सुन कर गायेत्री पीछे मुड कर देखती है जो कोई उसे ही संबोधित कर रहा था I दरअसल राजू दोनों के बातो में लगे देख खेलता हुआ एक खीलौनो के दूकान पर जाने की कोशिश कर रहा था की अचानक ही उसके सामने एक स्कोर्पीओ आ कर रूकती है I गायेत्री दौड़ कर राजू को पकड़ने चली जाती है इधर लीला गायेत्री को अपने से दूर हुआ जान कर एक सामने के ही छोटे से बस स्टेशन से धीमी गाती से आती हुई बस को दौड़ कर पड़ने की कोशीश में भागने लगती है I गायेत्री जैसे ही राजू को पकड़ कर वापस मुडती है लीला बस के पीछे दौडती हुई देख राजू को एक बुजुर्ग के हवाले ````( जो की उसी के ही गाँव का आदमी होता है और मेले में सब्जीयाँ लेकर बेच रहा होत है ) करती हुई लीला के पीछे भागती है और उसे आवाज लगाती है रुक जा लीला रुक जा ळीईईईईळाआआ रुक जा पर कोई फायेदा नही होता है लीला तबतक बस का दूर रोड पकड़ कर उपर चढ़ चुकी होती है I लीला अपने आँखों में छलक आयें आंशुओं को अपने दुप्पट्टे से साफ़ करती हुई कहती है हम के माफ़ कर दीह गीतू और बस के साथ अपनी मंजील की और बढ़ जाती है I इधर गायेत्री उसे जाती हुई देखते रह जाती हैं और बोझील कदमो से राजू को उठाकर घर की और चल पड़ती है I

 

अब तो गायेत्री के कदम उठ कर उसके घर की तरफ चलने से इनकार कर देते है गायेत्री कभी रस्ते में बैठती है तो कभी रोटी सुबकती चानले लगती है आखीर वक़्त से तीन घंटे लेट घर पहुचती हैं घर के सामने अपने बाबूजी और दादा जी को देख कर उसका दील धक् से कर के रह जाता है वो येही सोचती है की आखीर वो उन्हें क्या जावाब देगी , तबतक उसके दादा जी की नजर उसपर पड़ती है वो गायेत्री के पीता जी से कहते है - राधे देख तो गीतू अकेले ही आवत बाडी का लीलावती ओकरा साथ नइखे दीखाई देत, दादा जी के बातो से सब के सब अपनी नजरों मे एक अनहोनी सी ले कर गायेत्री के तरफ देखते है गायेत्री की माँ उसके पास दौडती हुई जाती है और उसे आहीस्ता से ही पूछती है गीतू का भइल बेटा तू उदास कहे बाडु तोहरा आँख में आंशुं काहे बा और लीलावती कहाँ बाड़ी ? माँ के इतने सारे सवालों से गीतू बस अपनी माँ को देख कर फफक पड़ती है और कंधो से लग कर रोने लगती हैं तबतक उसके पीता जी भी वहां आ जाते हैं और गीतू से पूछने लगते है गायेत्री बता लीलावती कहाँ बीया I पीता जी के कड़क आवाज ख़तम होते ही गायेत्री सुबकते हुए बताने लगती है-बाबूजी लीला हम के मेला में छोड़ के कलकत्ता चल गइलI

 

उसके बात ख़तम होते ही राधे अपने सबसे प्यारी बेटी गीतू को एक जोरदार थप्पड़ मारते है तबतक गायेत्री की माँ गायेत्री को अपनी बाहों में भर के उसे छुपाने की कोशीश करती हुई कहती है - ये मे गीतू का दोष बा सब दोष त लीलावती के रहे इहे थोड़े कहले होई की तू मेला से कलकत्ता चल जा राधे उसकी माँ पर चिल्लाते हैं की हम पहीले ही तोहरा से मना करत रहनी की दोनों के एक साथ मेला में न जाये द लेकीन अब सियाराम ( लीला के पीता जी ) जी के कौन जवाब दी तू की हम ?

 

लीला के ड्राइंग रूम का शीन..........!

 

 

रमेश ओकरा बाद हम गीतू के धोखा देके मनैनी मेला से कलकत्ता ना जा के सीधे संतोष के घर सीताब्दीयर गैनी और हमनी दोनों कलकत्ता जा के अपना माई बाबूजी जी के फ़ोन पर अपना आवे के बारे में बतवनी लेकीन हमार बाबूजी हम के हमेशा के खातीर अपना घर में ना आवे के हीदायत देदेल I अब रामू तू ही बताव की हम कीतना खुश रहीं आखीर हम का गुनाह कर देले बानी I रमेश लीला के भर्रा आये आवाज से उका खुद भी गला रुंध जाता है पर अपने आप को संभालता हुआ कहता है , भगवान् पर भरोसा करीं लीला जी सब ठीक हो जाई, आखीर राउर पीता जी यह शादी से नाखुश काहे बानी का संतोष अच्छा लड़का नैखी या फीर कोई पढाई लीखी में कमी रहे I लीला रामू के सवालों के जवाब में बताती है, ना ना रामू संतोष के संगीनी बन के हम खुद के ऊपर गर्व महसूस करत बानी इ बात हमार बाबूजी और माई भी जानत बानी संतोष MBA कर के आपण बुइसेनेस कर रहल बाड़े कोई चीज के कमी न भइल आज तक I लड़का बच्चा भी अछा से ही पढ़ लीख रहल बाडन I शाम के संतोष से मिल के तू उनकरा बारे में जान जइब, रमेश और लीला दोनों बात कर होते हैं I

शीन बदलता है

 

 

रात का समय लगभग ९ - १० बजे डीनर के छोटे से टेबल पर रमेश और लीला दोनों आमने सामने बैठे होते हैं एक तरफ लीला का पती संतोष अपने दो बच्चों के साथ बैठे होते हैं लीला सबको खाना निकाल कर दे रही होती है तभी संतोष रमेश से उसका हाल समाचार पूछता है - सब ठीके बा भाई साहब ऊपर वाले के मेहरबानी से अभी तक जीन्दा ही बानी रमेश कहता है I संतोष कहता है - अएंसन काहें कहत बाडअ भाई भगवान करस की तू १०० साल और जीन्दा रहअ रमेश आगे और कुछ कहना नहीं चाहता है चुचाप खाना खा कर एक कमरे में सोने चला जाता है I इधर लीला बेड रूम में उसके पती संतोष से बताती है जान्त्बानी रमेश बहुत दुखी इंसान बाड़े मगर दील के बहुत बड़ा भी I संतोष को रमेश को देख कर ही उसका दील साहानुभूती से भर गया था लीला की बातो से अब उससे रहा नही गया और पूछ ही बैठा लीलू रमेश के बारे में कुछ पूछल चाहता आखीर उ कहां से आवत बाडन ? और लीला को लेकर रमेश के पास आता है रमेश जहां सोने की नकांम कोशीश कर रहा होता है I

 

 

रमेश दोनों को देख कर कहता है आईं जा बइठी जा I

 

संतोष और लीला दोनों बैठते हुए कहते हैं रामू तू हम के अभी तक बत्व्ल ना की कहाँ से आवत बाड ? और इतना दीन कहां रहअ ? तोहरा साथ में का भइल ?

 

अब तो रमेश के मुह से एका एक निकलता है जे से.......! काsssssssssssssss! जेsssssल से लीला संतोष दोनों चौक जाते हैं I

 

हाँ संतोष जी हम खून के जुर्म में बीस वर्स के सजा काट के आवत बानी - रमेश कहता है I

 

लीला कहती है रमेश तू जेल काहे गइल रहअ ? तू त अइसन कुछ ना कर सकत बाड हम के सब कुछ साफ़ साफ़ बताव I

 

रमेश उन दोनों को अपनी आप बीती सुनाता है फ्लैश बैक में रमेश के घर का शीन जब रमेश ८ साल का रहता है दीपावली के एक सप्ताह पहले मुहल्ले के सब लोग अपने अपने घर की लीपाई पोताई में लगे रहते हैं कोई अपने घर को चुना से पोत रहा होता है तो कोई मीट्टी और गोबर से लीपाई कर होता है रमेश के पीता जी राम दयाल जी घर के सामने चारपाई पैर बैठे न्यूज पेपर पढ़ रहे होते है रमेश की माँ भी अपने घर के दरवाजे खीड्कीयों को साफ़ कर होती है रमेश अपनी माँ को छोटे से जग से बाल्टी से पानी नीकाल कर दे रहा होता है , तभी गाँव के ही एक साहूकार सेठ दशरथ दो आदमीयों के साथ आते हैं I

 

सेठ दसरथ जी कहते हैं - राम राम राम दयाल जी और सुनाव का हाल बा ?

 

राम दयाल जी खड़े होते हुए दसरथ जी के साथ दोनों नवान्गंतुक का भी सवागत करतें हुए कहते हैं जय राम जी के दसरथ भईयां बहुत बढीयां और सुनाव तोहरे का हाल बा इहाँ सब के के बां हम पह्च्न्नी ना ?

 

अरे भाईं सब बतावत बानी थोडा सबर रखअ पहले कुछ जल पान करके के त लाव दसरथ जी कहते हैं I

 

हाँ हाँ भाईं काहे ना रामदयाल जी कहते हैं और रमेश को आवाज लगाते हुयें कहते हैं रामू ज़रा घर से कुछ जल पान करे के त लावअ बेटा I रमेश अपने पीता जी को अच्छा बाबूजी कहते हुए अपनी माँ के साथ घर के अन्दर चला जाता है I

 

इधर दसरथ जी रामदयाल जी को दोनों नवान्गंतुको के बारे में परीचय कराते हुए कहते हैं - इ बाडन राधे राम जी और इ बाडन इनकर पीता जी श्री भरत लाल जी रामदयाल जी हम तोहरा से कहले रहनी न की हम तोहार बडका लड़का के शादी के खातीर एगो बढियां लड़की देखले बानी त अब तू इ बताव की एहमें कौन लड़की के पीता जी ह ? और कौन लड़की के दादा जी ? दसरथ जी अपने सवभाव के अनुसार रामदयाल जी से मजाक के तौर पर पूछते है I रामदयाल जी हसतें हुए कहते हैं - राजा दसरथ तू कभी सुधर ब ना अरे इ त साफ़ जाहीर बा की राधेराम जी लड़की के पीता जी इ भरत लाल जी लड़की के दादा जी I तबतक रामू एक जग में पानी और एक प्लेट में कुछ मीठाईयाँ लेकर आता है और नवान्गंतुको के साथ दसरथ जी को नमस्ते करता है दसरथ जी कहते हैं खुस रहअ बेटा और उसे अपने जेब से एक टौफ़ी निकाल कर देते है रमेश खुशी खुशी चला जाता है I फीर दसरथ जी अपने साथ लाये उन दोनों को आदमी को रामदयाल जी के बारे में बताते हुए कहते हैं - इ बाडन रामदयाल जी रीटायर्ड मेजर साहब इनकर बड लड़का कौलेज कईला के बाद गाँव से थोडा दूर एक बाज़ार में आपण बुइसेनेस करत बाडन I

 

रामदयाल जी तीनो आदमी को जल पान करने को कहते हैं तीनो मिलकर जल पान करते हैं और तब दसरथ जी कहते हैं अच्छा त रामदयाल भाईं इ बताव की बड़का कहाँ बा बोलावा भाईं इहाँ सब के लड़का देखे आइल बानी फीर लौटे के भी बा , रामदयाल जी दसरथ जी से कहते हैं - अरे भाईं लौटे के काहे बा आज येहीजे रुकीं जा का इहाँ पर खाना ना मीली ?

 

ना ना भाई जी अईसन कोई बात नईखे दरअसल बात इ बा की आज ही शाम के हमनी के लड़की अपना फूफा जी सीयाराम जी के साथ कलकत्ता से आवे वाली बाडी येही से हमनी के घर में होखल थोडा जरुरी बा राधेराम जी कहते है , फीर रामदयाल जी अपने बड़े लडके को बुलवा लाते हैं राधेराम जी और उनके पीता जी श्री भरत लाल जी को लड़का पसंद आ जाता है तब भरत लाल जी कहते हैं की अच्छा त रामदयाल जी लड़का त बहुत बढीयां बा बाक़ी कुछ लेन देन के भी बात हो जाए I तब दसरथ जी बींच मे बोलते हैं - रउवा लेन देन के लेके चिंता मत करीं भरत लाल जी पहले इनका के आपण लड़की त दीखा दीं लेन देन बाद में भी होत रहीं और रामदयाल जी की और मुखातीब होते हुए कहते हैं - का हो दयाल भईयां ठीक कहानी की ना ?

 

हाँ हाँ भाई काहें ना त रउवा सब बताईं की हम कब आईं ? रामदयाल जी पूछते हैं I

 

भरत लाल जी कहते हैं - ठीक बा रउवा दीपावली के दीन आ जाईं I

 

अच्छा ठीक बा I कहते हुए रामदयाल जी दोनों के साथ दसरथ जी को भी वहां से बीदा करते है I

 

शीन बदलता है

 

राधेराम जी के घर का शीन शाम के ५ - ६ बजे का समय सीयाराम जी राधेराम जी के जीजा साहब राधेराम जी के बड़ी लड़की और छोटी लड़की गायेत्री के साथ घर में आते हैं घर में उनके आने से खुसी का माहौल बन पङता हैं शाम को राधेराम जी उनके पीता जी भरत लाल सीयाराम जी उनकी पत्नी राधेराम जी की पत्नी एक साथ बैठे रहते है वहीं उनकी बड़ी लड़की भी खडी रहती है राधेराम जी सब को शादी के लीये लड़का देख आने और लड़के वालो को दीपावली के दीन लड़की देखने आने के बारे में बताते है तभी उनकी लड़की वहां से दुसरे घर में चली जाती है सब मीलकर शादी ठीक ठाक हो जाए इस्केलीये भगवान से दुआ करते है I

 

एक सप्ताह बाद राधेराम जी के घर के सामने का दृश्य दीपावली के दीन गाँव के हर वयक्ती मुहल्ले के हर आदमी के चेहरे पर एक ख़ास उम्मंग दीखता है हर कोई अपने आप को सजाता हुआ , कोई दीप जलाने की तैयारी , तो कोई पटाखे जलांने की कोशीश में लगा हुआ है I तभी रामदयाल जी के साथ सेठ दसरथ जी और रमेश अपने पीता जी के उंगली पकडे हुए टेम्पू से उतरते हुए दीखते है और राधेराम जी के बैठक खाने ( फार्म हाउस का दालान ) में पहुचते हैं I वहां पर भरत लाल जी मीलते है उनका स्वागत करते हैं और जल पान कराते हैं , रात के लगभग ८ - ९ बजे राधेराम जी भरत लाल जी और उनके घर के सभी पुरुष सदस्य इक्कठा बैठे हुए दीखते हैं दालान के बाहर बम पटाखों की और गाने बाजो की आवाज आती हीं सुनाईं पड़ती है I दसरथ जी कहते हैं - अच्छा त राधेराम जी आज के माता लछमी और कुबेर भगवान् के पावन दीन में जरा रामदयाल जी के घर के लछमी के भी दीखा द और कीतना इनके लछमी देत बाड इहो बता द I

 

 

ठीक बा दसरथ जी रउवा पहले हमार लड़की के देख ली - राधेराम जी कहते हैं I और अपने सबसे छोटे भाई से अपनी लड़की को बुलवा लाते हैं I लड़की आती है सब को प्रणाम करती है और एक जगह बैठ जाती है रामदयाल जी को लड़की पसंद आ जाती है और फीर राधेराम जी से कहते हैं - लड़की त हमके बहुत संस्कारी और सुन्दर लागल भाई जी इ त हमरा घर के बहु ना लछमी ही बन के जाई I रामदयाल जी के बातो से वहां उपस्थीत सभी बेहद खुश होते हैं और रामदयाल जी अपने कुरते के बगल से १०१ रुपये नीकाल कर लड़की के हाथों में रख देते हैं तब राधेराम जी अपनी लड़की से कहते हैं - अब तू जा बेटी I और लड़की उठकर एक बार फीर रामदयाल और दसरथ जी को नमस्ते करती है और जाने को मुडती है की भरत लाल जी लड़की दादा जी रमेश की तरफ इशारा करते हुए जो की अपनी होनेवाली भाभी को देख रहा होता है कहते है बेटी तू इनका भी अपने साथ ले ले जा I लड़की सीर्फ हाँ म अपना सर हीलाती है और रमेश का हाथ पकड़ कर अन्दर घर में लेके चली जाती है रामदयाल जी दसरथ जी राधेराम जी भरत लाल जी और उनके सभी भाई बंधू शादी पक्की हो जाने की खुशी में एक दुसरे को मुबारक बाद देते है और उस दीपावली के दीन को और खुशनुमा करते हुए एक दुसरे के मुंह में मीठाईयाँ खीलाते ह और बैठ कर लेन देन की बात करने लगते हैं I

 

राधेराम जी के दुसरे घर का शीन जहां पर घर के सभी औरतें लडकीयाँ रमेश को घेरे रहती हैं , एक पूछती है का हो बबुआ तोहर माई भी तोहरे लेखा सुंदर बाडी का की तू कोई और के लईका हव, वहां मौजूद और सभी ठहाके के साथ हँसने लगती हैं रमेश छोटा होते हुए भी सब समझ जाता है की ये सब मुझसे मजाक कर रही हैं वो अपनी मासूम आवाज में कहता है  ना जी हम त अपना माई के ही लईका हईं आ हमार माईं हमसे भी सुन्दर बाडी I रमेश की बातों से सभी औरतें एक बार फीर हसने लगती है I तभी एक छोटी सी, लगभग ६ या ७ साल की लड़की जीसका नाम गायेत्री रहता है अपने हाथ में एक छोटे से प्लेट में कुछ मीठाईयाँ और पटाखे रख कर अन्दर दाखील होती है और अपनी माँ से कहती है माई ल इ इनका देदअ , उस लड़की के ऐसा करने पर सारी औरतें उसे एक साथ देखती हैं और एक उसे अपनी गोदी में उठा के रमेश की और इशारा करती हुई कहती है गीतू इ के हवन तू इनका खातीर इ सब लईलू हा ? वो छोटी सी लड़की अपनी तोतली आवाज में कहती है हाँ चाची हम दुनो एक साथ पटाखा जलाईब और रमेश की और इशारा करती हुई कहती है चलअ रमेश बाहर चलके पटाखा छोड़ल जाई , अपनी चाची की गोदी से उतर कर गायेत्री और रमेश दोनों घर के आँगन में छोटे छोटे पटाखे जलाने लगते हैं I दोनों उस दीन दो दोस्त की तरह घुल्मील जाते हैं और दोनों मील कर मीठाईयाँ खाते हैं और साथ ही एक बेड पर सो जाते हैं I ( राधेराम जी के चार बच्चे रहते है एक बड़ी लड़की -रमेश की भाभी उसके बाद एक लड़का रामकुमार - जो की एक हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा होता है वो कभी कभी ही और किसी ख़ास मौके पर ही अपने घर आ पाता है, उसके बाद गायेत्री और फिर सबसे छोटा राजू )

      शीन बदलता है

 

अप्रैल मई का महीना रमेश के घर का शीन रामदयाल जी अपने घर के सभी सदस्यों के साथ शादी की तैयारी में लगे हुए है सभी अपने आप को सजाने सवांरने में लगा हुआ है रामदयाल जी अपने छोटे भाईयों दीनदयाल और कीशन दयाल से कहते है अरे तुम दोनों नाँच पार्टी और साम्यांना का बयाना दे दीहले रहजा की ना ?

 

हाँ हाँ भईयां सब एकदम ठीक और तैयार बा तू चीनता मत करअ उ सब अपने आप ओहीजा टाईम पे पहुँच जईहें कीशन दयाल कहते हैं I

 

दो पहर के लगभग ४ - ५ बजे का समय सभी आदमी तैयार होकर बारात जाने की तैयारी में खड़े गाडी के इन्तजार में लगे रहते हैं थोड़ी देर में गाडी आ जाती है सभी अपनी अपनी सीट संभालते हैं , गाडी चल पड़ती है गाडी में गाना बज रहा होता है आयें हम बाराती बारात लेके जायेंगे तुझे भीss.........! और फीर गाँव इटारी ( राधेराम जी गौएत्री के पीता का गाँव ) के पास गाडी रुकती है सभी बाराती उतरते हैं और साम्यान्ना में जाकर बैठते हैं वहां नाच गाना (यहाँ पर कोई भी एक गाना जो की एक नौटंकी वाली लड़की को गाते हुए दीखाते हैं ) होता है I शादी होती हैं सुबह बारात दुल्हन को लेकर वापस आ जाती है I बारात और दुल्हन के घर आते ही घर और मुहल्ले के सभी बहुत हरसो उल्लाश में रहते है I

 

समय का चक्र अपने गती से घूमता रहता है , सब अपने अपने दीन्चार्या में लग जाते हैं ,


उनको देखकर ऐसा लगता है की दोनों एकदूसरे के लीए ही बने है ५ शाल बाद रमेश के स्कूल के गरमीयों की छुट्टीयों में एक बार गायेत्री रमेश के घर अपनी बहन से मीलने आती है रमेश के घर के सभी लोग उसे बेहद प्यार करते हैं गायेत्री भी सब लोगो से जल्दी ही घुल्मील जाती है , उन दीनो रमेश और गायेत्री की उम्र १२ - १३ शाल की होती है रमेश गायेत्री से एल शाल बडा रहता है I देहात होने और साली से मजाक करने के कल्चर की वजह से घर के , मुहल्ले के मजाक करने वाले लड़के , गायेत्री के जीजा लगने वाले उसे रमेश की घरवाली कहकर पुकारने लगते है I गायेत्री इस बात का बुरा नही मानती है, जो कोई भी उसे ये कहता है की - का हो गीतू तोहार दीदी त रमेश के भाभी बाडी और तू केकर मेहरारू बाडू ! तब गायेत्री तपाक से उनको येही जवाब देती है की रमेश के और केके हो सकत्बानी I कभी कभी तो ये वाकया रमेश के सामने ही गुजरता है रमेश के दील पे इसका गहरा असर होता है और वो एक दीन गायेत्री से पूछता है I

 

गायेत्री तू इ बताव, तू सबके इ काहे कहलू की तू हमार घरवाली हउ ?

 

गायेत्री कहती है रमेश लोग हम से मजाक करे ले त हम एही से कह देनी I का हमार तोहार साथ में शादी होई त तू हम से शादी ना करबअ का ? गायेत्री के इतना पूछने पर रमेश उसे वहीं बिठाते हुए कहता है , गीतू इहाँ आव बईठ दोनों बैठते हैं - हम तोहसे ही शादी करब तू हम के बहुत अच्छा लागेलु I गायेत्री रमेश के कंध्नो पर अपना सीर रखकर अपनी आँखे बंद कर लेती है , और गाने का शौकीन रमेश उसे गाने सुनाने लगता है I उस दीन के बाद तो दोनों एक दुसरे के बीना नही रह पाते हैं या यूँ कहे की दोनों की आत्मा सायद एकदूजे के लीये ही बनी हो , एकदूसरे के लीए तड़पने लगती है I दोनों जैसे जैसे जवान होते हैं उन दोनों की दोस्ती प्यार में बदल जाती है और दोनों एकदूसरे से इतना प्यार करने लगते हैं की साथ में जीने और मरने की कसम खाने लगते है इस बात का रमेश की भाभी मात्र को ही पता रहता है रमेश के घर में और कोई नही जानता है सब येही सोचे है की दोनों दोस्त बन चुके हैं I

 

 

शाल बाद

 

आठ साल बाद एक बार रमेश के घर में रमेश की बड़ी बहन की सगाई होने वाली होती है, ( रमेश और गायत्री दोनों जवानी के दल्हिज पार कर चुके होते है गायेत्री के खुब्शुरती में तो और चार चाँद लग जाते है उसका सुंदर चेहरा नीखर कर पूर्ण रूप से खीले गुलाब के फूल सा हो जाता है जिसे देखकर उसकेउम्र का हर लड़का एक बार तो आहे भरे बीना नही रह पाता है , रमेश भी उस गुलाब के फूल को अपने हाथो में लेकर जी भर के देखना, सहलाना, चूमना चाहता है, पर उसे गायेत्री कही दिख नही पा रही है आखिर थक कर उसे अपनी भाभी से ही पूछना पड़ता है ) उस मौके पर रामदयाल जी के सभी रीसतेदार आये होते है गायेत्री भी अपने पीता जी और छोटे भाई राजू के साथ आई रहती है I पर रमेश को गायेत्री के आने की खबर नही रहती है गायेत्री रमेश से नजर बचा कर चुप चाप ओरतों के बींच जाकर बैठ जाती है , वो भी यही चाहती है की रमेश उसे ढूंढे रमेश गायेत्री के ही आने के बारे में सोचता रहता है सुबह से लेकर दो पहर तक ना जाने कीतनी बार अपनी भाभी से पूछ चुका होता है I एक बार तो उसकी भाभी उसे छेड़ती भी है और कहती है I

 

का बात बा देवर जी रउवा गीतू के बारे में आज सुबह से पूछत बानी कही कोई चकर त नइखे ?

 

रमेश सर्माता हुआ कहता है - अरे ना भाभी अइसन कोई बात नइखे हम त ऐसे ही पूछत बानी की शाम होखे वाला बा और अभी तक सब रीसतेदार लोग ना आईळ I

 

रमेश की भाभी कहती है - बबुआ रामू सब कोई त आ गइल बा बाक़ी उहे अभी तक नइखे आइल Iजबकी रमेश की भाभी को गायेत्री के आने का पता रहता है I रमेश थोडा उदास सा हो जाता है और जैसे ही जाने को मुड़ता है उसकी भाभी उसे जाने से रोकती है रमेश के चेहरे को देखकर रमेश की भाभी को उसपर तरस आता है और रमेश को एक घर के दरवाजे के ओट से आँगन में बैठीं ओरतों के भीच में छुपी बैठी गायेत्री को दीखाती है, और रमेश को बताती है, देखअ रमेश हम के गीतुआ मना कर देले रहे की हम तोहके ओकरा बारे में ना बताई की गीतू आ ग़ईळ बीया अब तू जानअ I

 

अच्छा त इ बात बा ठीक भौजी हम न बताइब हम के भी मौक़ा मिली त हमहू उनके अईसही तङपाइब - रमेश कहता हुआ डोर बाल्टी और एक लोटा उठाता है और कुँवॆ पर नहाने के लीए चला जाता है I

 

दुसरे दीन रामदयाल जी के होनेवाले समधी अपने कुछ रीस्तेदारों के साथ आते हैं और रमेश की बहन की सगाई की रस्म होती है पंडीत जी के द्बारा तीलक दहेज़ और बरात का दीन तय होता है I बरात के एक दीन पहले घर के सभी लोग अपने आप को सवांरने और नीखारने में लगे रहते है रमेश एक कमरे में कपडे प्रेसकर रहा होता है उसके पास ही एक टेप रीकोर्देर बज रहा होता है जीसमे गाना बजता है जब दील ना लगे दीलदार हमारी गली आ जाना ....! गायेत्री आँगन में अपनी दीदी के साथ कामो में हाथ बटा रही होती है अन्दर घर में बज रहे गाने को सुनकर बस उसका दील तो रमेश के पास चला जाता है और वो वहां से रमेश के पास जाने की तरकीब सोचने लगती है I वो अपनी दीदी से कहती है I दीदी रमेश कपडा प्रेस करत बाडन हम भी आपण कपडा देदी का ? गायेत्री की दीदी समझ जाती है और उसे छेडती हुई कहती है तू चीनता मत कर गीतू आज हम उनके पुरे घर के ना सीर्फ तोहरे और उनके ही कपडा प्रेस करेके दीहले हईं I फीर भी उसे कहती है - जा गीतू उनका भी मन प्रेस करे में ना लगत होई हमारा त डर बा की कहीं उ तोहरा ख्याल में कपडा ही ना जला देस या फीर प्रेस के ही ना अपना होठ से लगा लेस गायेत्री अपनी दीदी को धत ! कहती हुई उठती है और रमेश के पास जाने लगती है रमेश के पास पास पहुँच के गायेत्री कहती है I केके अपना गली में बतावत बाड़अ रमेश I

 

रमेश कहता है - हम जेकरा के बुलावत रहनी उ त आ गईल बा अब कोई के जरुरत नईखे I और दोनों मीलकर म्न्मगन हो प्यार भारी बातें करते रहते ह I दोनों मीलकर शादी की मंडप मांडो को सजाते हैं दीवारों ,पर इधर उधर हर जगह खुभ चीत्रकारी और नाकाशीयाँ करते हैं I

 

दस दीन बाद रामदयाल जी के घर में बरात आती है , घर का हर सदस्य अपनी अपनी धुन में लगा रहता है रमेश की माँ सब तैयारीयां करने लगी रहती है रमेश के पीता जी बारातीयों के आव भगत करने के बाद उनके ठहरने के जगह पर ले कर जाते हैं ,जहां पहले से ही नांच गाने का प्रोग्राम चलता रहता है I उस दीन गायेत्री ने अपने आप को इस कदर सवांर रखा था की कोई भी हम उम्र का लड़का उसे देखकर आहें भरकर ही रह जाता था I रमेश के दोस्तों ने तो अब रमेश की कीस्मत पर तज्ज्बो देने लगे थे , एक ने तो गायेत्री के हुस्न पर छीटाकशी करते हुये ये कहने लगा - यार रमेश तू हमार गायेत्री से शादी करा द हम कुछ भी दहेज़ में ना लेम , रमेश उसे कुछ कहता की रमेश का चचेरा भाई सुरेश उसे समझाता है - देख सेखुआ दोबारा अब कभी अईसन मत कही हे उ घर से नीकालल बाडी का की कोई भी ऐरा गैरा से उनकर बीयाह हो जाईI जवानी का दौर और शादी का माहौल उसका दोस्त सेखुआ शाराब के नशे में रहता है और सुरेश की बातों का बुरा मान जाता है और झगडा करने की कोशीश करने लगता है, तब सुरेश उसे धक्का देदेता है तब तक रमेश उनके बीच में आ जाता है और सुरेश को ये कहते हुये अपने साथ चलने को कहता है - छोड़ द एके सुरेश इ अभी पीय्ले बा I

 

सेखुआ अपने आप को संभालता हुआ सुरेश और रमेश दोनों को धमकीयां देने लगता है - हम तोहनी दुनो के देख लेब सुरेश , और इ भी सुन ले इ तोर साली बाडी न येहीजा अईसही ना रह जईहें हम उनका ना छोडम और लड़खडाता हुआ वहां से चला जाता है I शरीर से हट्टा कट्टा रमेश सेखुआ के बातों से तो नही घबराता है पर गायेत्री को कुछ हो जाने के ख्याल मात्र से ही तड़प उठता है छत पे खडी हो बरातीयों को देखती हुई गायेत्री को वो एकटक से देखने लगता है वो ये भी भूल जाता है की उसे और कोई देख सकता है I

 

गायेत्री उस दीन हलके गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी जीसपर गाढे रंग के फूल बने हुए थे गायेत्री उस साडी में एक फूल ही लग रही थी I गायेत्री की नजर रमेश पर पड़ी तो वो अपनी बगले झाँकने लगी की कही कोई और तो नही रमेश की इस हरकत को देख रहा हैं और रमेश को इशारा करती हुई छत से नीचे आ गई , रमेश भी उस घर में गया जहां पर गयेत्री खडी थी रमेश के अन्दर आते ही गायेत्री ने रमेश के गले में अपनी बाहें डालती हुई पूछने लगी

  • का बात बा रमेश ? तू आज हमके अईसे काहे देखत रहअ ? रमेश उसके बाँहों को अपने गले से नीकालते हुए कहता हैं I

     

  • देखअ गीतू तू सबसे मजाक करत रहलू अब हमारा अच्छा ना लगत बा तब गायेत्री उसे हसते हुए कहती है I

     

  • रमेश हम जानत बानी की तू हमके हमारा से भी जादा प्यार करलअ लेकीन हम त सीर्फ ओही आदमी से मजाक या फीर कोई बात करीला जो हम के आपण रीस्ता में दीखला दोसर लोग के तरफ त हम देखल भी पसंद ना करीला, हमके आपन तोहार और इ घर के इज्जत के पूरा ख्याल बा रमेश Iलेकीन हम के कुछ अईसन लागत बा की तू कुछ हम के छुपा के बात करत बाडअ कहे से की तू त आज से पहीले अइसन बात ना कईले रहअ I

     

तब रमेश गायेत्री की तरफ पलटता हुआ और गायेत्री को प्यार भारी नजरो के साथ देखते हुए कहता है I

 

  • अभी हमार सेखुआ से झगडा हो गईल रहे I

     

  • काहे ? गायेत्री आश्चर्य के साथ पूछती है I

     

  • उ तोहरा के उलटा बोलत रहे और उ हमके धमकी देले बा का की हम गायेत्री के ना छोडम एह से हम तोहरा से कहत बानी की तू ओकरा से कभी बात मत करीह और कभी भी ओकरा के अपना पास मत आवे दीहअ, कभी उ तोह के छेड़े के कोशीश करे त तू हम के बतईह मतलब तू हमेशा ओकरा से संभल के और सावधान ही रही

    I तू जानत बाडू की उ एकदम ही कमीना इंसान बा I

     

  • ठीक बा रमेश हम वैसे भी ओकरा से कभी कोई बात ना करीले बाक़ी उ अगर हमारा साथ में कोई भी बदतमीजी करे के कोशीश करी त हम खुद ही ओकर चप्पल से हजामत बना देम I गायेत्री रमेश को बताती है तभी रमेश उसे थोडा खीजन के साथ कहता है I

     

  • अरे ना गयेत्री तू अईसन कोई काम ना करबू , ओकरा के सबक हम सीखाईब तू सीर्फ हम के ओकर हरकत के बारे में बता दीह , और जैसे गुर्ररा हुआ कहता है, साला I तभी गायेत्री उस कमरे के वातावरण को खुशनुमा और अपने और रमेश के रोमांस से रोमांचीत करने की कोशीश करती हुई कहती है I

     

  • छोड़ उ के रमेश हमनी के खा मु खा अपना सर में टेंशन काहे के लेत बानी जा जब उ अईसन कोई हरकत करी तब ओके देखल जाई I और रमेश को अपनी बाहों में भर लेती है I रमेश भी अब उसे अपने बाहें फैला कर जकड़लेता है और कहता है I

     

  • गीतू तू आज बहुत ही सुन्दर लागत बाडू I और उसकी तरफ धीरे धीरे झुकने लगता है , रमेश को अपनी ओर आते देख गायेत्री अपनी आँखे बंद कर लेती है I रमेश को गयेत्री के सुन्दर चेहरे को देखकर लगता है की वो जैसे जैसे गायेत्री के होटों के करीब जा रहा है वैसे वैसे उसका चाँद सा प्यारा मुखडा एकदम सुर्ख लाल होता जा रहा है Iगायेत्री के तरफ से कोई प्रती कीर्या ना होने पर रमेश उसकी रजामंदी समझते हुए आज इतने सालो की उनकी दोस्ती और प्यार में पहली बार गायेत्री के फूलों के पंखुडीयों से होटों को चूम लेता है I गायेत्री अपनी आखें खोलती है और सरमाती हुई रमेश से कहती है I

     

  • रमेश हम तोहरा से एगो बात पूछल चाहत बानी की आज इतना दीन के बाद तू हमके इतना प्यार के लायक समझल आज तोहके इतना हीम्मत कैसे हो गईल ? तब रमेश गायेत्री को अपने बाहों में उठा लेता है और कहता है I

     

  • गीतू हम तोहके आपन जीन्दगी से भी जादा प्यार करीले और हम अभी तक इहे चाहत रहनी की हमनी के प्यार हमेशा पवीत्र रहे , Iकेहू और के नजर में हमनी के प्यार रीस्ता के आड़ में खेलेवाला खेल ना बन जाए , और कोई हमनी के प्यार के गाली ना दे पावे , इहे वजह और इ सोच के हम तोह से हमेशा दूर रहे के ही कोशीश कईनी ह की एक दीन त हमनी के मीलन जरुर होई I और फीर तो गायेत्री रमेश को एक प्यारा सा नाम देती हुई कहती है I

     

  • रमेश तू हम के हमेशा से ही गायेत्री ना कह के गीतू कहेलअ हम तोह के आज से रमेश ना रामू कहम I रमेश भी अपने को गायेत्री से प्यारा नाम पा कर खुस होता है और फीर दोनों वहा से आँगन में आजाते है जहां पर औरतें बैठ कर गाने बजाने की तैयारी में लगी रहती है कोई ढोल मांग रहा है तो कोई झाल ला रहा है I ( लाउड स्पीकर वाला माइक उठा कर उन औरतो में से किसी एक को देना चाहता है पर माइक लेने के लीये उठे 10-15 हाथो को देख कर किसके हाथ में माइक दे ये सोचने लगता है तब तक रमेश उससे माइक लेकर गायेत्री के हाथो में माइक देने की चाह से उसकी नजर उन औरतो में गायेत्री को ढुँढनॆ लगती है, पर गायेत्री उसे कही नही दिखती है तब तक उन औरतो में से एक जो रिश्ते में रमेश की भाभी लगती है रमेश को संबोधीत करती हुई कहती है I

     

  • रमेश हम जानत बानी की तू केकरा के खोज रहल बाङअ और अपने पीछे छुपी गायेत्री को आगे करती है रमेश गायेत्री के हाथो में माइक देता है गायेत्री मुस्कुराती हुई माइक लेती है और शादी के रशमो में गाने जाने वाले गानों और गीतों से सबको मंत्रमुग्ध कर देती है, वहाँ बैठी औरते अपनी दातो तले ऊंगलियाँ दबा लेती है और एक बार तो सब मील के गायेत्री की तारीफ़ करना नही भूलती है I

     

 

 

 

 

 

 


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