कलह बन जाएगी कराह एक दिन I
पानी देते हुए स्त्री भी घिनाएगी II
स्वामी कह मनाये जग छोड़न को I
संग छोड़ कपूत मन भाएगी II
प्रभु प्रभु पुकार रहा अब मन I
प्राण पापी है की छोड़े नहीं तन II
जब तक रहा बुढ़ापे से दूर I
हाय संचय में लगा रहा मन II
तन को न देख परख तू मन को I
रगड़े खूब नित्य नये ले इत्र जैसे II
रगड़ बिन पानी साबुन मन को I
खड़ा अरण्य चन्दन जैसे II
छूटे प्राण संग चले सब कोई I
द्वार तक ही छोड़े रोते परजाई II
लगा कन्धा ले हरि का प्यारा नाम I
तू क्या सुने जब छोड़ चला भजन धाम II
पञ्च कर्मा कर मुख अग्नि दिया तो I
रोते सिसकते चुप हो गई II
तोड़ खंखनी शर्धांजलि दिया तो I
पोछा चक्शु अब मन भर गई II
कैसे प्रेमी कैसा पति अब I
न स्नेह रहा न रही वो सती अब II
भुला बिसरा सब बंद कर दी पाती I
संभालो समझ किसी पागल की थाती II