आधी जिन्दगी

20/11/2007 11:47

सुनसान पड़ी रहो में जिन्दगी की
कटी जवानी अकेले एक अर्शो में,
खबरें-ए-दास्ताँ मिली उनकी एकदिन
जो बिसर न पाएं दिल से उन वर्सो में,
शिलशिला बढ़ा बातो बातो से जब
धड़कने बढ़ी आहिस्ता हर लब्जो में,
एक बार उन्होंने मुझसे ऐसा कहा
मेरे दिल की बल्लियाँ उछलने लगे,
मैं आँऊगी तुम्हारे पास एक दिन
सपने सजाउँगी सारेतुम्हारे एक दिन,
सुनाउ जिसे भी दास्ताँ-ए-मुहब्बत
कोई खुश तो कोई जलने लगे,
सच हुवे वादे मुहब्बत उनका
पूरी होगी मेरी अब हर ख्वाईश,
जब मिले हम दोनों एक दूजे से तो
दिल ने की उनसे हजारो फरमाइश,
वो दिन रात मेरी नशीब की थी
जिसकी मुझे थी वर्शो से ख्वाइश,
दिन तो धुँधला धुँधला सा लगता हैं
तारीख थी जनवरी की 27,
सुहाग उधार का दुल्हन एक रात की
सबकुछ लुटाया लाज रखी मेरे जज्बात की,
दुनियाँ देखे किसी और नजरो से हमें
क्या कद्र किसी के तोहफे सौगात की,
रश्मे जहाँ में बेकद्र मुहब्बत
छोड़ चले मुझे वो एक दिन वहीं पर,
मैं उन्हें ढूँढता रहा फिर सारी उम्र भर
भरें सारे आस्मां वीरान पड़े जमीं पर, 
      
 

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विनोद कुमार सक्सेना

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